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एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान - द्वितीय प्रश्नपत्र - फैशन डिजाइन एवं परम्परागत वस्त्र

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :172
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2694
आईएसबीएन :0

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एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान - द्वितीय प्रश्नपत्र - फैशन डिजाइन एवं परम्परागत वस्त्र

प्रश्न- चन्देरी साड़ी का इतिहास व इसको बनाने की तकनीक बताइए।

उत्तर -

मध्य प्रदेश के अशोक नगर जिले में चन्देरी कस्बा है। पहाड़ी की तलहटी में स्थित यह कस्बा एक प्राकृतिक खूबसूरती की कहानी कहता है। चन्देरी को आर्थिक एवं सामाजिक स्तर पर बुनकरों के कस्बे के नाम से जाना जाता है। ये बुनकर 'बधवा' कहलाते हैं। चन्देरी साड़ी का नाम इस स्थान के नाम से प्रसिद्ध हुआ। यहाँ की बुनी नाजुक साड़ियाँ उत्तर भारत में काफी लोकप्रिय हैं। इसे मुस्लिम व कोली समुदाय के बनुकर बनाते हैं। इन्हें आसावली साड़ियाँ भी कहते हैं।

इतिहास - चन्देरी एक पुराना कस्बा है जो कि चारों ओर से दर्शनीय स्थलों से घिरा है। मुगलकाल में चन्देरी साड़ी की तुलना महीन ढाका की मलमल से की जाती थी। स्थानीय बुनकरों के द्वारा जो किस्में बनायी जाती थीं। इसको बारीक 300° काउन्ट के कते हुए धागे से तैयार करने में बुनकर निपुण थे। इन बुनकरों के समूह को 'कतिया' कहते थे।

परवत्ती काल में चन्देरी साड़ी में मेनचेस्टर से आयात होने वाला मिल का धागा 120 - 200 काउन्ट का) प्रयोग होने लगा। जिसका चन्देरी वस्त्र उद्योग पर काफी प्रभाव पड़ा।

1930 के लगभग चन्देरी में जापानी सिल्क का प्रवेश हुआ जिसे ताने के रूप में काम लेने लगे व बाने में सूती धागा ही रहा। इन दोनों के मिश्रण से विभिन्न प्रकार की साड़ियाँ बनने लगीं।

इन साड़ियों में नाजुक सुनहरे धागों से चौखाने के रूप में पल्लू व बॉर्डर बुना जाता था। डिजाइन सीधी रेखाओं वाले और मुगलकालीन कला में मार्बल की पच्चीकारी होती थी। यह देखने में साधारण रत्नों की जड़ावट सी लगती है। यह साड़ी बहुत मुलायम, हल्की और अर्द्धपारदर्शी होती है।

चन्देरी तकनीक

चन्देरी साड़ी में पहले ताने व बाने में सूती धागों का प्रयोग होता था। बारीक सूती धागे की साइजिंग करने के लिए विशेष प्रकार की जड़ 'कोलीकान्दा' का प्रयोग करते थे। दो-तीन बार धागों पर यह क्रिया करने में धागों में गोलाई व मजबूती के साथ-साथ पॉलिश जैसी चमक आ जाती थी। ये बुनकर लगभग बारह साड़ी का ताना एक साथ तैयार करते थे एवं बाना दो या तीन साड़ी का तैयार करते थे।

इसके बाद सूती धागों को करघे पर चढ़ाकर कंघी से निकालते हैं। डिजाइन के लिए अतिरिक्त बाना और ताना का प्रयोग करते हैं। जटिल बुनाई के लिए दो बुनकरों की जरूरत होती है। पिट लूम की जगह आजकल फ्लाई शटल करघे का प्रयोग होने लगा है।

सन् 1940 तक चन्देरी साड़ी की सतह में प्राकृतिक पीला रंग का धागा होता था। फिर मिश्रा परिवार ने चन्देरी के बाने के धागों को रंगना शुरू किया। रंगे धागे दक्षिण से भी मँगवाये जाते थे। इसमें केसर से रंगी एवं सोने की जरी युक्त बॉर्डर का प्रयोग कर साड़ी बनाते थे जिसका उपयोग अधिकांशतः उच्च वर्ग की महिलाओं द्वारा किया जाता था। ग्राहक की माँग के अनुसार भी रंगाई कर साड़ी बनायी जाती थी। इन साड़ियों में सूती की जगह सिल्क आ जाने के कारण रासायनिक रंगों का प्रयोग होने लगा।

साड़ियों में प्रयुक्त जरी आगरा से मँगवायी जाती थी। चाँदी के तार पर सोने की पॉलिश की हुई जरी को सूती धागों पर लपेटा जाता था, जिसे 'कलावत्तु' के नाम से जाना जाता था। बॉर्डर व पल्लू में इस जरी का प्रयोग करते थे। बाद में सूरत की जरी का प्रयोग होने लगा।

रंग - चन्देरी में जो रंग प्रयोग किये जाते थे उनके स्थानीय नाम प्रकृति से लिये गये। * जैसे- केसरी, बादाम, अंगूरी, मोरगर्दनी, तोतई, मेंहदी, रानी, फालसा आदि। बॉर्डर में जरी के साथ लाल, बैंगनी, महरून, गुलाबी, हरे आदि रंगों का प्रयोग कर अलंकृत किया जाता है। साड़ी की मुख्य सतह का रंग हल्का पीला व अब धीरे-धीरे विभिन्न रंगों का प्रयोग होने लगा।

डिजाइन – चन्देरी में पारम्परिक डिजाइन में किनारी को बुना जाता था। पल्लू व किनारे पर विशेष रूप से चन्देरी में पंक्तिबद्ध डिजाइन चलता था जिसमें रुई, फूल, फूलदार, बतासा, चकरी, जई, कैरी, जूही फूल आदि डिजाइन मुख्य थे। चन्देरी साड़ी की पहचान बारीक जरी पट्टी की बुनाई से होती थी। चन्देरी साड़ी में रुई, फूल व चकरी बूटा बीस साल से डिजाइन में प्रयुक्त हो रहा है।

इन साड़ियों में बॉर्डर का विशेष महत्व होता था। इनके डिजाइन मुख्य रूप से हासिया किनारी, तीन किनारी, लहरिया, गोल किनारी, पान किनारी आदि से अलंकृत किया जाता है।

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'दो चश्मी' साड़ी में दो तरफ किनारे अलग-अलग रंग के होते हैं। सतह में सूती व बॉर्डर में सिल्क धागों से साटिन बुनाई होती थी जिसे 'गंगा-जमुना' साड़ी के नाम से जाना गया। इसी तरह ताने में सिल्क व बाने में सूती धागों का प्रयोग कर बुनने वाली साड़ी को 'नीमरेशमी' नाम दिया। विशेष रूप से दुल्हन के दुपट्टा को पटला के नाम से जाना जाता था। जिसका उपयोग ओढनी के लिए किया जाता था। इसमें बूटी को सतह पर बुना जाता था। हैण्डलूम के आने से बूटों को नये-नये रूप में बनाया जाने लगा। इन बूटों में जरी का प्रयोग होने लगा जिससे साड़ी में आभूषणों जैसा प्रभाव दर्शित होने लगा इसमें कट वर्क का प्रयोग नहीं किया जाता है।

व्यापारिक केन्द्र– चन्देरी साड़ी से जुड़े व्यापारी, इनमें अधिकांश हिन्दू होते थे। जैन लोग यह व्यापार करते थे। विशेष रूप से कलकत्ता, बड़ौदा, पूना, सूरत, कोल्हापुर आदि में इसका व्यापार होता था। दक्षिण में इसके व्यापार को फेरीवालों के द्वारा फैलाया गया। चन्देरी साड़ी की लम्बाई 8 या 9 मीटर भी होती थी। इनका उपयोग महाराष्ट्रीयन महिलाओं द्वारा किया जाता है। आजकल चन्देरी में साड़ी के अलावा सलवार सूट, स्कॉर्फ आदि वस्त्र भी बनाये जा रहे हैं।

बनारस, कलकत्ता, सेलम आदि स्थानों पर आजकल इसकी नकल पर ही साड़ियाँ बनायी जा रही हैं।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- डिजाइन के तत्वों से आप क्या समझते हैं? ड्रेस डिजाइनिंग में इसका महत्व बताएँ।
  2. प्रश्न- डिजाइन के सिद्धान्तों से क्या तात्पर्य है? गारमेण्ट निर्माण में ये कैसे सहायक हैं? चित्रों सहित समझाइए।
  3. प्रश्न- परिधान को डिजाइन करते समय डिजाइन के सिद्धान्तों को किस प्रकार प्रयोग में लाना चाहिए? उदाहरण देकर समझाइए।
  4. प्रश्न- "वस्त्र तथा वस्त्र-विज्ञान के अध्ययन का दैनिक जीवन में महत्व" इस विषय पर एक लघु निबन्ध लिखिए।
  5. प्रश्न- वस्त्रों का मानव जीवन में क्या महत्व है? इसके सामाजिक एवं सांस्कृतिक महत्व की विवेचना कीजिए।
  6. प्रश्न- गृहोपयोगी वस्त्र कौन-कौन से हैं? सभी का विवरण दीजिए।
  7. प्रश्न- अच्छे डिजायन की विशेषताएँ क्या हैं ?
  8. प्रश्न- डिजाइन का अर्थ बताते हुए संरचनात्मक, सजावटी और सार डिजाइन का उल्लेख कीजिए।
  9. प्रश्न- डिजाइन के तत्व बताइए।
  10. प्रश्न- डिजाइन के सिद्धान्त बताइए।
  11. प्रश्न- अनुपात से आप क्या समझते हैं?
  12. प्रश्न- आकर्षण का केन्द्र पर टिप्पणी लिखिए।
  13. प्रश्न- अनुरूपता से आप क्या समझते हैं?
  14. प्रश्न- परिधान कला में संतुलन क्या हैं?
  15. प्रश्न- संरचनात्मक और सजावटी डिजाइन में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  16. प्रश्न- फैशन क्या है? इसकी प्रकृति या विशेषताएँ स्पष्ट कीजिए।
  17. प्रश्न- फैशन के प्रेरक एवं बाधक तत्वों पर प्रकाश डालिये।
  18. प्रश्न- फैशन चक्र से आप क्या समझते हैं? फैशन के सिद्धान्त समझाइये।
  19. प्रश्न- परिधान सम्बन्धी निर्णयों को कौन-कौन से कारक प्रभावित करते हैं?
  20. प्रश्न- फैशन के परिप्रेक्ष्य में कला के सिद्धान्तों की चर्चा कीजिए।
  21. प्रश्न- ट्रेंड और स्टाइल को परिभाषित कीजिए।
  22. प्रश्न- फैशन शब्दावली को विस्तृत रूप में वर्णित कीजिए।
  23. प्रश्न- फैशन का अर्थ, विशेषताएँ तथा रीति-रिवाजों के विपरीत आधुनिक समाज में भूमिका बताइए।
  24. प्रश्न- फैशन अपनाने के सिद्धान्त बताइए।
  25. प्रश्न- फैशन को प्रभावित करने वाले कारक कौन-कौन से हैं ?
  26. प्रश्न- वस्त्रों के चयन को प्रभावित करने वाला कारक फैशन भी है। स्पष्ट कीजिए।
  27. प्रश्न- प्रोत / सतही प्रभाव का फैशन डिजाइनिंग में क्या महत्व है ?
  28. प्रश्न- फैशन साइकिल क्या है ?
  29. प्रश्न- फैड और क्लासिक को परिभाषित कीजिए।
  30. प्रश्न- "भारत में सुन्दर वस्त्रों का निर्माण प्राचीनकाल से होता रहा है। " विवेचना कीजिए।
  31. प्रश्न- भारत के परम्परागत वस्त्रों का उनकी कला तथा स्थानों के संदर्भ में वर्णन कीजिए।
  32. प्रश्न- मलमल किस प्रकार का वस्त्र है? इसके इतिहास तथा बुनाई प्रक्रिया को समझाइए।
  33. प्रश्न- चन्देरी साड़ी का इतिहास व इसको बनाने की तकनीक बताइए।
  34. प्रश्न- कश्मीरी शॉल की क्या विशेषताएँ हैं? इसको बनाने की तकनीक का वर्णन कीजिए।.
  35. प्रश्न- कश्मीरी शॉल के विभिन्न प्रकार बताइए। इनका क्या उपयोग है?
  36. प्रश्न- हैदराबाद, बनारस और गुजरात के ब्रोकेड वस्त्रों की विवेचना कीजिए।
  37. प्रश्न- ब्रोकेड के अन्तर्गत 'बनारसी साड़ी' पर प्रकाश डालिए।
  38. प्रश्न- बाँधनी (टाई एण्ड डाई) का इतिहास, महत्व बताइए।
  39. प्रश्न- बाँधनी के प्रमुख प्रकारों को बताइए।
  40. प्रश्न- टाई एण्ड डाई को विस्तार से समझाइए।
  41. प्रश्न- गुजरात के प्रसिद्ध 'पटोला' वस्त्र पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  42. प्रश्न- राजस्थान के परम्परागत वस्त्रों और कढ़ाइयों को विस्तार से समझाइये।
  43. प्रश्न- पोचमपल्ली पर संक्षिप्त प्रकाश डालिये।
  44. प्रश्न- पटोला वस्त्र से आप क्या समझते हैं ?
  45. प्रश्न- औरंगाबाद के ब्रोकेड वस्त्रों पर टिप्पणी लिखिए।
  46. प्रश्न- बांधनी से आप क्या समझते हैं ?
  47. प्रश्न- ढाका की साड़ियों के विषय में आप क्या जानते हैं?
  48. प्रश्न- चंदेरी की साड़ियाँ क्यों प्रसिद्ध हैं?
  49. प्रश्न- उड़ीसा के बंधास वस्त्र के बारे में लिखिए।
  50. प्रश्न- ढाका की मलमल पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  51. प्रश्न- उड़ीसा के इकत वस्त्र पर टिप्पणी लिखें।
  52. प्रश्न- भारत में वस्त्रों की भारतीय पारंपरिक या मुद्रित वस्त्र छपाई का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  53. प्रश्न- भारत के पारम्परिक चित्रित वस्त्रों का वर्णन कीजिए।
  54. प्रश्न- गर्म एवं ठण्डे रंग समझाइए।
  55. प्रश्न- प्रांग रंग चक्र को समझाइए।
  56. प्रश्न- परिधानों में बल उत्पन्न करने की विधियाँ लिखिए।
  57. प्रश्न- भारत की परम्परागत कढ़ाई कला के इतिहास पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  58. प्रश्न- कढ़ाई कला के लिए प्रसिद्ध नगरों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  59. प्रश्न- सिंध, कच्छ, काठियावाड़ और उत्तर प्रदेश की चिकन कढ़ाई पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  60. प्रश्न- कर्नाटक की 'कसूती' कढ़ाई पर विस्तार से प्रकाश डालिए।
  61. प्रश्न- पंजाब की फुलकारी कशीदाकारी एवं बाग पर संक्षिप्त लेख लिखिए।
  62. प्रश्न- टिप्पणी लिखिए: (i) बंगाल की कांथा कढ़ाई (ii) कश्मीर की कशीदाकारी।
  63. प्रश्न- कश्मीर की कशीदाकारी के अन्तर्गत शॉल, ढाका की मलमल व साड़ी और चंदेरी की साड़ी पर टिप्पणी लिखिए।
  64. प्रश्न- कच्छ, काठियावाड़ की कढ़ाई की क्या-क्या विशेषताएँ हैं? समझाइए।
  65. प्रश्न- "मणिपुर का कशीदा" पर संक्षिप्त लेख लिखिए।
  66. प्रश्न- हिमाचल प्रदेश की चम्बा कढ़ाई का वर्णन कीजिए।
  67. प्रश्न- भारतवर्ष की प्रसिद्ध परम्परागत कढ़ाइयाँ कौन-सी हैं?
  68. प्रश्न- सुजानी कढ़ाई के इतिहास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  69. प्रश्न- बिहार की खटवा कढ़ाई पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  70. प्रश्न- फुलकारी किसे कहते हैं?
  71. प्रश्न- शीशेदार फुलकारी क्या हैं?
  72. प्रश्न- कांथा कढ़ाई के विषय में आप क्या जानते हैं?
  73. प्रश्न- कढ़ाई में प्रयुक्त होने वाले टाँकों का महत्व लिखिए।
  74. प्रश्न- कढ़ाई हेतु ध्यान रखने योग्य पाँच तथ्य लिखिए।
  75. प्रश्न- उत्तर प्रदेश की चिकन कढ़ाई का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  76. प्रश्न- जरदोजी पर टिप्पणी लिखिये।
  77. प्रश्न- बिहार की सुजानी कढ़ाई पर प्रकाश डालिये।
  78. प्रश्न- सुजानी पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  79. प्रश्न- खटवा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।

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